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चन्दा मामा / बालकृष्ण गर्ग

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तरह-तरह के रूप बनाते,
बहुरूपिया हैं चंदा मामा।
कभी दीखते फुलस्टाप-से
और कभी बन जाते कामा।

[रचना : 12 मई 1996]