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कानाबाती कूउउर्र / बालकृष्ण गर्ग

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मेढक बोले टर्र,
बर्राती है बर्र।
जूता बोले चर्र,
मोटर चलती घर्र।
मम्मी सोतीं खर्र,
पापा जाते डर्र।
चिड़िया उड़ती फर्र,
कानाबाती कुउउर्र।
[साप्ताहिक हिन्दुस्तान, 14 जुलाई 1974]