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घड़ी / बालकृष्ण गर्ग

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टिक-टिक-टिक-टिक बोल रही,
मेरी पहली सीख यही-
‘समय न बीते व्यर्थ कहीं’।

टिक-टिक-टिक-टिक बोल रही,
मेरी पहली सीख यही-
‘काम समय पर करो सही’।

टिक-टिक-टिक-टिक बोल रही,
मेरी अंतिम सीख यही-
‘बूरे काम तुम करो नहीं’।
[नवभारत टाइम्स (मुबई), 24 फरवरी 1976]