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मानहानि / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

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कुछ दिन पहले एक सवेरे
एक गाँव से गुजरा हाथी
मस्त चाल से चला जा रहा
साथ न कोई संगी-साथी।

कुत्तों का नेता था कालू
उसने जब हाथी को देखा
भौं-भौं करके लगा दौड़ने
पास पहुँच हाथी से बोला ---

“मोटे, तुझको पता नहीं यह
गाँव हमारा कहलाता है
हमको बिना सलाम किए ही
तू चुपचाप चला जाता है”।

हाथी ने कालू को देखा
लेकिन चलना रूका न पल भर
कालू बहुत क्रोध में आया
बोला, “ओ, बेडौल जानवर

इतने बड़े कान हैं तेरे
फिर भी नहीं सुनाई देता
मैं तुझसे कुछ पूछ रहा हूँ
क्यों तू मुझे जवाब न देता।

मैं तुझको गाली देता हूँ
तुझ पर कोई असर नहीं है
महंगी बहुत दुश्मनी मेरी
क्या तुझको यह खबर नहीं है?

माना तू कायर प्राणी है
लेकिन क्या इस कदर डरेगा
बतला, मुझ पर मानहानि का
दावा भी क्या नहीं करेगा”?

हाथी के मुख पर मुस्काहट
और चाल में मस्ती आई
कालू के दल ने घबरा कर
भौं-भौं रोकी, पूँछ दबाई।