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कबाड़ी / ओमप्रकाश चतुर्वेदी 'पराग'

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घर के दरवाजे पर खड़ा कबाड़ी
पूछ रहा, “बेचोगे घोडा-गाड़ी ?

कैसा भी हो माल मैं खरीदूँगा
सब चीजों की वाजिब कीमत दूँगा।

शर्त यही है हो हर माल पुराना
खटके नहीं किसी को उसका जाना।

हो जिसका उपयोग न कोई घर में
ऐसी चीज़ बेच डालो पल भर में”।

बाबा बोले, “सुनो कबाड़ी भैया
घर में गाड़ी और न घोडा-गैया।

बस मैं ही हूँ माडल बहुत पुराना
लेकिन मेरे पैसे ठीक लगाना।

मैं अब कोई काम नही का पाता
और रात-दिन सब पर रोब जमाता।

कितने ही रोगों ने मुझको घेरा
अब कोई उपयोग नहीं है मेरा।

सब शर्तें करता हूँ पूरी तेरी
अब बटला क्या देगा कीमत मेरे”?

हँसा कबाड़ी, फिर बोला, “मैया री
मैं न मोल लूँगा ऐसी बीमारी।

आप न मेरे किसी काम आओगे
रोटी, पानी, दवा रोज खाओगे।

काम आपसे कोई ले न सकेगा
और चाम के दाम न कोई देगा”।

गया कबाड़ी, दादा जी मुसकाए
व्यंग्य समझकर घर वाले शरमाए