रोज जन्मदिन मेरा होता,
कितना अच्छा रहता।
माँ, हर दिन खुशियों का झरना,
अपने घर में बहता।
ढेर टाफ़ियाँ जेबों में भर,
सब पर शान जमाता।
मिले हुए उपहारों की ही,
गिनती कब कर पाता?
डांट न बिल्कुल पड़ती, ऊधम
चाहे जितने करता।
राजाजी की तरह शीश पर
मुकुट हमेशा धरता।