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पिता / यतींद्रनाथ राही

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घुटुरुन चले
रेनुतन मण्डित
और तोतली वानी
पिता तुम्हारी उंगली थामी
तब दुनिया पहचानी

आँगन-द्वार गली-चौपालें अपने और पराए
कभी गोद में
घर कन्धों पर
कितने पाठ पढ़ाये
वेद-पुराणों की
जातक की
कितनी कथा कहानी।
माँ धरती थी
तुम अम्बर थे
इन पंखों की क्षमता
तुम से शक्तिवन्त होती थी
माँ की कोमल ममता
माँ ने प्यार दिया
ममता दी
तुमने भरी जवानी।

सारे जग के
परम पिता को
तुम्हें जानकर ही पहचाना
उसी एक रिश्ते से हमने
बन्धुभाव जगती का जाना
जो कुछ मुझमें
दिया तुम्हीं ने
तुम थे अवढरदानी

पिता
तुम्हारी उँगली थामी
तब दुनिया पहचानी।