Last modified on 23 मई 2018, at 12:39

छवियाँ / यतींद्रनाथ राही

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:39, 23 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यतींद्रनाथ राही |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उभर रही हैं
दृश्य पटल पर
कितनी मधुर क्रूरतम छवियाँ

मां बन गयी
नीड़ में चिड़िया
पुलकित कलियाँ
गन्ध विनर्तन
डाल-डाल मदिरायी सी है
पात-पात में
थिरकन-थिरकन
सोहर गूँज रही कलरव में
बौरायी
मधुवन की खुशियाँ

और दूसरी ओर
झाँड़ियों में
वह एक भ्रूण-शव घायल
होगा कहीं
बिलखता कुंठित
ममता का मैला सा आँचल
दृश्य यही हैं
रोज़ यहाँ पर
राज पन्थ हो
या फिर गलियाँ।

क्या सीखा
पाया निसर्ग से
क्या जीवन
यह भी है जीना?
कितना ज़हर पी रहे हैं हम
कितना और
पड़ेगा पीना?
मानवता के क्रूर नाश की
निकट आ चुकी हैं
पगध्वनियाँ।
26.9.2017