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गिल्लू गिलहरी / अखिलेश श्रीवास्तव

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जब झुरमुट तक नहीं होगा
और पानी वितरित होगा सिर्फ़ पहचान पत्र देखकर
बरगद, पीपल...
सब मृत घोषित कर दिये जायेगें

प्रकाश-संश्लेषण पर कालिख पोतते हुए
सागर सुखा दिया जायेगा
क्योंकि वह मृदुता से असहमत हैं
तो कविताओं में तुम
नीर भरी दुख की बदली
कहाँ से लाओगी महादेवी?

जब जल विष बन जायेगा
और हर कंठ शंकर
अनुबंध पर ले लिए जायेगे सभी फेफडे
अमीर चिमनीयो के धुआं संशोधन हेतु
चींटियाँ अचेत हो जायेंगी कतारों में
चुटकी भर आटे के लिए
तब भी तुम व्यस्त रहना
निबंधों में खूब अनाज बाँटना महादेवी!

अब मैं एक घूँट पानी नहीं पिऊँगी
न खाऊँगी एक भी काजू
जब तक तुम
नदी, जंगल, जमीन
के लिए नीर नहीं बहाओगी!

फिक्रमंद गिल्लू गिलहरी ने
महादेवी से कहा!