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गोरखपुर / अखिलेश श्रीवास्तव

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बानरों ने कच्चा कंदमूल त्याग दिया है
अब बिना देवता के मदद के
उगा लेता है अनाज!
 
बादल में चमकी बिजली
 पकड़ कर नदी के मुहाने पर
बाँध दी गई है और अब
चाकरी करती है आदमी की!

पगडंडियों ने दूरी तय की
और बदल गई
राजमार्गो में
कुएँ बाँधों में बदल गये!
धरती की छाती पर फोड़े से उगे
माटी के घर बदल गये गगन चुंबी अटट्लिकाओं में
गुब्बारे उठे और पहुँच गये मंगल तक!

सबने तरक्की की उर्ध्व दिशा में
सिर्फ साहित्य चला है पीछे
 सिर्फ़ हमीं चले उल्टी राह पर!
 
 अलिफ लैला में राक्षस की जान
पिंजरे के तोते की गरदन में थी
और चाभी बच्चों के हाथ में!
 
आज बच्चों की जान तोते में है
और चाभी
राक्षसों के हाथ में
इधर वह चाभी घुमाता है
उधर कई गर्दनें ऐंठ जाती हैं!