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कोहरा / अखिलेश श्रीवास्तव

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मैं शाम होते-होते तुम्हें चाँद कह ही देता हूँ
नहीं तो रात तक तुम मेरे लिए
नक्षत्र हो जाओगी।
यह नयी युक्ति, नया विचार रच
फिसल कर गिरने का समय है
देवता गिर कर बदल रहे है मानव में
मानव असुरो में
असुर श्वानो में
स्त्री, देव तक तुमको सिर्फ़ देखना नहीं
स्पर्श करना चाहते है
कोहरा, एक बहाना है
रातो का विस्तार है इसमें
देवताओं की लार मिली हुई है।