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कायर-2 / अखिलेश श्रीवास्तव

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मैं जात का कोरी हूँ
बिना थके दिन भर
बाभनों के खेतों को पानी पिलाता हूँ
एक पल में इतना वीर हूँ
कि पहलवान जुलाहो को
चित्त कर देता हूँ

अगले ही क्षण इतना कायर
कि लूले बनिये का पैर दबाता हूँ।