Last modified on 29 जुलाई 2018, at 12:58

इन दिनों / अखिलेश श्रीवास्तव

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:58, 29 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अखिलेश श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुमनें पलकें खोली
हथेलियाँ हटा ली चेहरे से
खिड़की से निहारा आकाश भी
पर भोर नहीं हुई
सूरज नहीं उगा।

तुमनें आबनूस से केश बिखेरें
तो भी नहीं उमड़े कुंतल मेघ
बादल के फोहों ने झुक कर
पेड़ के फुनगियों की कोई खबर नहीं ली
सीपो के मुंह खुले रह गये
कोई स्वाति बूंद उन तक नहीं पहुंची।

तुमने छमकाई पायल
पर नदी ने जल तंरग नहीं छेडा़
गौरैया ने फुदक-फुदक कर
ताल से ताल नहीं मिलाया
न कोयल ने कूक भरी
न कबूतर ने कहा गुंटर गूँ।

मेरा प्रेम तुम्हारी क्रियाओं का कंठ है
वही पहुँचाता है तुम्हारी सारी बातें ख़ुदाई तक
तुम फिर से आ जाओ मेरे पास
ईश्वर सुन नहीं रहा हैं तुम्हारी कुछ भी
इन दिनों।