सीतल सरीर ढार, मंजन कै धन सार,
अमल अँगोछे आछे मन में सुधारिहौं।
देहौं न अलक एक लागन पलक पर,
मिलि अभिराम आछी तपन उतरिहौं।
कहत 'प्रवीणराय' आपनीन ठौर पाय,
सुन बाम नैन या बचन प्रतिपारिहौं।
जब ही मिलेंगे मोहिं इन्द्रजीत प्रान-प्यारे,
दाहिनों नयन मूदि तोहीं मौं निहारिहों।