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प्रतीक्षा / नीरजा हेमेन्द्र

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अँधेरे में
टटोलते-टटोलते मेरा हाथ
एक दरवाजे से जा टकराया
मैं
साँकल खटखटाने लगी
लेकिन मुझे
खुद भी नही मालूम था कि
अन्दर
अपने में विलीन कर लेने वाला
स्याह और
स्वयं को ही न देख पाने वाला
घना अंधकार है या
 चमचमाती हुई,
इन्द्रधनुश-सी छटा बिखेरती हुई
रोशनी भी
मैं दरवाजा खुलने की
प्रतीक्षा करने लगी।