एकांत / पल्लवी त्रिवेदी

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मैं अपने निपट अकेलेपन में अपने ही अंदर जाती हूँ
खुद से ज्यादा अनबूझी जगह कोई नहीं
खुद से ज्यादा अनजाना कोई नहीं
अपने भीतर घूमना ब्रह्मांड में घूमना है
मौन इस यात्रा का सबसे ज़रूरी सामान है
और एकांत एकमात्र साथी
तब तीनों काल मेरे भीतर चक्कर काटते हैं
अतीत एक समंदर की तरह सामने आता है
जिसके किनारे बैठ बस देखती हूँ आती-जाती लहरों को तटस्थ दृष्टि से
उन अजन्मी लहरों को भी पहचान लेती हूँ जो कभी किनारे लगी ही नहीं
तटस्थता से अच्छा औज़ार नहीं दृष्टि प्रखर करने का
और प्रखरता से अच्छा औज़ार नहीं स्वयं के शल्य के लिए
वर्तमान को मैं एक नदी की तरह देखती हूँ
जिसमें लगातार एक नौका चल रही है
नौका में लगातार छिद्र होते जाते हैं
नाविक मैं स्वयं हूँ
एक हाथ में मेरे चप्पू है
दूसरे हाथ से मैं छिद्रों को बंद करती जाती हूँ
भविष्य मेरे सामने एक मोटा ताला जड़ा संदूक है
चाबी उस छेदों वाली नौका में छुपी हुई है और
खोलने का तरीका समंदर के अंदर किसी मछली के पेट में

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