Last modified on 3 सितम्बर 2018, at 17:44

जतन / नंदेश निर्मल

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:44, 3 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदेश निर्मल |अनुवादक= |संग्रह=चल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चलो उठो, सब बढ़ो जतन से
जीवन को हम सुरभित कर लें
शिक्षा की रिम-झिम वर्षा में
हम भारत को कुसमित कर लें।

चलो उठो, सब बढ़ो जतन से
जीवन को हम सुरभित कर लें।

जोड़ चले अक्षर से अक्षर
दीप्त ज्ञान निर्मित हम कर लें
समय गया अनपढ़ लोगों का
ज्ञान रत्न को घर-घर कर लें।

चलो उठो, सब बढ़ो जतन से
जीवन को हम सुरभित कर लें।
                                                                                        
इसी समर का विजय पताका
लक्ष्य बना आँखों में भर लें।
जो रचता कल्याण सभी का
आज उसे अंतरस्थल कर लें।

चलो उठो, सब बढ़ो जतन से
जीवन को हम सुरभित कर लें।

यह है ऐसा धन जिसका हम
जितना चाहे दोहन कर लें
और फैसला जाता है यह
चलो इसे सब मौत बना लें।

चलो उठो, सब बढ़ो जतन से
जीवन को हम सुरभित कर लें।

यह मन मितबा कभी न छूटे
पत्नी, बच्चे छूट भी जाते
इसके संग लगन लग जाए
भोर हुआ यह तभी समझ लें।

चलो उठो, सब बढ़ो जतन से
जीवन को हम सुरभित कर लें।