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नाहोनी / बैगा

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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी नानी नानी नानरी, नानी तर नानी नाना रे नान।
आनोओ सगही बनिया क कइयाकोरय संगही हमार।
माई नर्बदा सोने बहादूर, जोइला माँ करै असनान। दैया।
आनो ओ संगही लिख लिखा कपड़ा पेहरय संगही हमार, दैया

शब्दार्थ –सगही=सखी/सहेली, ककइ=कंघी, कोरइ=बाल ओछना, लिख लिखा=चमकदार छपा हुआ/कढ़ाई किया हुआ, पेहरय=पहने।

जब दूल्हा-दुल्हन को नहलाया जाता है। तब इस गीत को गाया जाता है।

दुल्हन रोती हुई कहती है- हे सहेलियों! बाल धोने की मिट्टी जल्दी लाओ। बाल ओछाने की सुंदर कंघी लाओ। जल्दी से एक घड़ा गरम पानी लाओ। नहाने के बाद पहनने के लिये चमकदार वस्त्र भी लाओ।

हमारे दूल्हा और दुल्हन माता नर्मदा, बहादूर नद सोनभद्र और जोहिला नदी के पवित्र जल से स्नान कर रहे हैं।