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वार झूलनी / बैगा

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बैगा लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

री रीना रीहल रीना, री रीना रीना हो, कि
री रीना रीहल रीना, री रीना रीना हो।
दे दाई गोड़ चुटकी जाव मड़ीला हाट हो। 2
तै कहाँ जाबी पूतो आ रे भोरे हो। 2
दे दाई डबरी पैरी जाव मड़ीला ना हाट हो। 2
तै कहाँ जाबी पूता आ रे अर भोरे हा। 2
दे दाई कमर करधन जाव मड़ीला हाट हो। 2
दे दाई हाथ के गुजरिया, जाव मड़ीला हाट हो। 2
दे दाई बाँह का बहंकर, जाव मड़ीला हाट हो। 2
दे दाई गले का सुतिया, जाव मड़ीला हाट हो। 2
दे दाई कान के ढार, जाव मड़ीला हाट हो। 2

शब्दार्थ – मड़ीला=मंडला के, भोरे=सुबह, जाबी=जाना, हाट=बाज़ार।

एक बैगिन लड़की माँ से कहती है- माँ ! मुझे तुम्हारे गहने दे दो। मैं गहने पहनकर मंडला के हाट घूमने जाऊँगी। माँ बोली-तुम मंडला क्यों जा रही हो। लड़की कहती है- माँ पहले मुझे गहने तो दे दो। फिर मैं बताऊँगी। इस पर माँ कहती है- तुझे क्या चाहिए – मैं पैर की ऊँगली से लगाकर सिर तक के गहने दे दूँगी। तुम सुबह से तैयार हो गई हो अच्छा तुम गहनों के नाम बताओ। तब लड़की कहती है- माँ मुझे ऊँगलियों की चुटकी, पाँव की पैरी, कमर की करधनी, हाथ के गुजरिया, बाँह का बहूँटा, गले की सुतिया और कान का सोने का ढार दे दो। मैं इनको पहनकर सहेलियों के संग मंडला शहर के बाजार में घूमने जाऊँगी।

शरीर के विभिन्न अंगों के आभूषणों के नाम उनके पहनने के अनुसार इस बैगा गीत में बहुत खूबसूरत से पिरोये गए हैं। स्त्री के आभूषण की चाह को भी व्यक्त किया गया है।