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कविता के अलावा / शिवराम

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जब जल रहा था रोम
नीरो बजा रहा था बंशी
जब जल रही है पृथ्वी
हम लिख रहे हैं कविता

नीरो को संगीत पर कितना भरोसा था
क्या पता
हमें ज़रूर यक़ीन है
हमारी कविता पी जाएगी
सारा ताप
बचा लेगी
आदमी और आदमीयत को
स्त्रियों और बच्चों को
फूलों और तितलियों को
नदी और झरनों को

बचा लेगी प्रेम
सभ्यता और संस्कृति
पर्यावरण और अन्तःकरण

पृथ्वी को बचा लेगी
हमारी कविता

इसी उम्मीद में
हम प्रक्षेपास्त्र की तरह
दाग रहे हैं कविता
अंधेरे में अंधेरे के विरुद्ध

क्या हमारे तमाम कर्तव्यों का
विकल्प है कविता

हमारे समस्त दायित्वों को
इति श्री

नहीं, तो बताओं
और क्या कर रहे हो आजकल
कविता के अलावा