एक सुबह
बसंत ने आकर
खिड़की पर दी दस्तक
मैंने देखा
मन का आकाश
आग सा धधक उठा है
पलाश के फूलों से...
जमीन पर झरे फूल
अंगारों से सुलगते दिख पड़ते हैं
गेहूँ की सुनहरी अधपकी बालियाँ
सरसों के पीले फूल
सब कुछ सुलग रहा है...
इन अंगारों पर दौड़ पड़ता है मन
बेतहाशा
खोने लगता है काबू...
बसंत के ये निशान
लेकर आए हैं
फूलों की क्यारियों सी महक
और तुम…
तुम भी तो अभी ही आए हो।