Last modified on 17 सितम्बर 2018, at 19:09

हमारे बीच / मंजूषा मन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:09, 17 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंजूषा मन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavit...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम एक किनारे पर खड़े थे
मैं दूसरे पर
तुम मुझे देख सकते थे
और मैं तुम्हें

हमारे बीच बहती थी
भावों की नदी
कभी शांत धीमे
कभी उफनती तोड़ती अपने ही तट

तुम उस किनारे की रेत पर
गढ़ रहे थे मेरा रूप
मेरा प्रतिबिंब
और मैं इस किनारे पर
कर रही थी प्रयास
तुम्हारे व्यक्तित्व को गढ़ने का

तुम और मैं
हम दोनों ही
पल-पल इस नदी से
भर रहे थे
भावों की अँजुरी
और इस धुन्धलाये प्रतिबिम्ब को
दे रहे थे नया रूप

मेरे और तुम्हारे बीच
दूर रहकर भी बह रही थी
भावनाओं की अल्हड़ नदी।