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रात / मंजूषा मन

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शाम का धुंधलका गहराते ही
सिमट कर सुकुड़ गई
कच्ची पगडंडी
दुबक कर छुप गई
पेड़ों के पीछे...

पक्का रास्ता,
और भी इठलाया,
उभर आया सामने
खड़ा हो गया
सीना ताने...