Last modified on 19 सितम्बर 2018, at 12:10

अभी उजाला दूर है शायद / निशान्त जैन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:10, 19 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त जैन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अभी उजाला दूर है शायद
दीवाली -दर- दीवाली ,
दीप जले, रंगोली दमके,
फुलझड़ियों और कंदीलों से,
गली-गली और आँगन चमके।
लेकिन कुछ आँखें हैं सूनी,
और अधूरे हैं कुछ सपने,
कुछ नन्हे-मुन्ने चेहरे भी,
ताक रहे गलियारे अपने।
खाली-खाली से कुछ घर हैं,
कुछ चेहरों से नूर है गायब,
अलसाई सी आँखें तकतीं,
अभी उजाला दूर है शायद।
थकी-थकी सी उन आँखों में,
आओ थोड़ी खुशियाँ भर दें,
कुछ मिठास उन तक पहुँचाकर,
कुछ तो उनका दुखड़ा हर लें।
कुछ खुशियाँ और कुछ मुस्कानें,
पसरेंगी हर सूने घर में,
मुस्कुराहटें-खिलखिलाहटें,
मिल जाएँगी अपने स्वर में।
तभी मिटेगा घना अँधेरा,
तभी खिलेंगे वंचित चेहरे,
रोशन होंगी तब सब आँखें,
तभी खिलेंगे स्वप्न सुनहरे।