Last modified on 7 दिसम्बर 2018, at 23:46

विषमय विरह / दरवेश भारती

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:46, 7 दिसम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दरवेश भारती |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दो पलों का मधु मिलन विषमय विरह में ढल गया।

 शशि उदित हो ही रहा था,
 बादलों ने आन घेरा।
 हा! कुँआरी रश्मियों को,
 ग्रस गया निर्मम अँधेरा॥
 हो गये विस्मित पथिक दो,
 हो उठे अन्तर विकल-से।
 बुझ गयीं मन की उमंगें,
 यों कि ज्यों पावक सलिल से॥
छूट प्रेमी के करों से प्रेमिका-आँचल गया।
दो पलों का मधु मिलन विषमय विरह में ढल गया॥

 आ गयी ऊषा नवीना,
 छँट गये बादल गगन से।
 पत्र-दल मधु लहरियों-सम,
 हो उठे झंकृत पवन से॥
 स्निग्ध, पुष्पित वाटिका में,
 भृंग-दल के गीत पाकर॥
 बन गयीं सुकुमार कलियाँ
 पुष्प, नव संगीत पाकर॥
किन्तु लगते ही प्रभाकर-ताप जीवन गल गया।
दो पलों का मधु मिलन विषमय विरह में ढल गया॥