छहर-छहर टूटती, ठहर-ठहर टूटती ।
टूट रहे सागर की लहर-लहर टूटती ।
अन्धियारा उतर रहा सपनों के गाँव में,
रेतीला सूनापन पलकों की छाँव में,
पत्थर ज्यों बन्धे हुए नज़रों के पाँव में,
यों मुझको देखो मत,
नीर भरी आँखों में एक लहर टूटती ।
दर्द भरे सागर की लहर-लहर टूटती ।
लगता है सारा अस्तित्त्व किसी झूठ पर,
टिका हुआ, जाता है आप ही बिखर-बिखर,
केवल रथ अर्थहीन, साँसों का क्षीण स्वर,
यों मुझसे पूछो मत,
पीर भरे प्राणों में एक लहर टूटती ।
दर्द भरे सागर की लहर-लहर टूटती ।
परिचित संस्पशों में तीखा अभिशाप है,
अजगर-सा आत्मा को कसे हुए पाप है,
लोहू में जलता विष, नस-नस में ताप है,
यों मुझको बान्धो मत,
टीस भरे अंगों में एक लहर टूटती ।
दर्द भरे सागर की लहर-लहर टूटती ।