Last modified on 11 जून 2019, at 20:29

जाली नोट / जयराम दरवेशपुरी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:29, 11 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तोर एक्कक बात
ओल सन कुलकुला हे
आउ एने हमर जनाजा निकल जाहे

न´ सूतल रहऽ ही
न´ बइठ के खाही
तू कउन धातु के
ढलल हें भयवा
आह से सुनऽ ही पथरो पिघल जाहे

अदमी जे सब दिन
अदमियें के सतइलक
पर्दा के आड़ में
सब करम कइलक
दुखिया के दिन जोरी सन अइंठल जाहे

डर तऽ हल लगल
गुंडा चोर सइतान के
जुआरी लफंगा
धइल बइमान के
ई अंधेर, जाली नोट चल जाहे।