Last modified on 11 जून 2019, at 20:30

करम के चक्का जारी हे / जयराम दरवेशपुरी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:30, 11 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयराम दरवेशपुरी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हम तऽ अप्पन अनवेरा में
सब निनान के फेरा में

कोय तऽ मरलइ छो-पाँ करते
अउ कोय मरलइ गिन-गिन धरते
कोय तऽ तेरा-मेरा में

कोय रहलो अनकर के चरते
कोय अप्पन आवरू बचइते
कोय छुप्पल घुप्प अन्हेरा में

कोय नाचे हे सरगम गावे
मन उमंग के धूल उड़ावे
कोय लटकल नया सवेरा में

कोय तितकी भी सुलगावऽ हे
कोय लहकल आग सथावऽ हे
कोय टुटली मस्त बसेरा में

कर्म के चक्का जारी हे
धरम के चक्का भरी हे
कोय चढ़ल बारूदी ढेरा पे।