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अकबक समइया / जयराम दरवेशपुरी

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दंभ द्वेष छल से हइ डगमग
मानवता के नइया
हे जग जननी सब सुख भरनी
जय जगतारण मइया

उपलाल महिषासुर
बउराल रावण वंश
दानवता डंसले हे अखनी
सब शुभ के विध्वंस
विमल विवेक से
निवारण के उपइया

तोर देल अमृत के
अदमी भुलइलो
पी-पी जहर सब
अपनइं ओझरइलो
दौलत के भूख लगल
निखमन कर मइया

महाशक्ति रूप धरि
धरती पर आवऽ
जनमन में प्रेम भाव
दियना जलावऽ आदिशक्ति
तोहरा ले अकबक समइया।