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धान रोपइ रोपनी / जयराम दरवेशपुरी

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धान रोपइ रोपनी....
खंधवा में निहुर-निहुर
धान रोपय रोपनी....

खेतवा में सोभऽ हइ रोपनी के धरिया
खुटले हइ ठेहुना तक सयवा अउ सड़िया
अहरी पर बड़का किसनमा हइ बइठल
देखऽ हइ घेंच घुमा टोकनी लगल
सावन अउ भादो के गदरल जुआनी
उमड़-घुमड़ बदरा उझलले हइ पानी

पुरवा के सप-सप मुँहें लगऽ हइ
छूट रहल देहिया से कंपकंपनी
मलक-मलक बदरा ठनक-ठनक ठनकइ
अरिया पर लोरे-झोरे चिलका चिहँकइ
लपटि के सुगना के साटि लेलक सजनी
ले-ले के पाही-पाही हाली-हाली खोंसऽ हइ

बुढ़वा कमीमा भी आझ मोरी ढोवऽ हइ
पनसोखा पुरूब खेलइ आँख मिचौनी
रहिया बटोहिया पर पड़लइ नजरिया
खटमिट्ठी रसभरल सुनावे लगला गरिया
अपने में कादो पोरे छौंड़ी बुलकनी।