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जैसे / मंगलेश डबराल

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पिता के बदन में बहुत दर्द रहता था ।
माँ रात में देर तक उनके हाथ-पैर दबाती थी,
तब वे सो पाते थे ।
फिर वह ख़ुद इस तरह सो जाती
जैसे उसने कभी दर्द जाना ही न हो ।
वह एक रहस्यमय सा दर्द था,
जिसकी वजह शायद सिर्फ़ माँ जानती थी
लेकिन किसी को बताती नहीं थी ।

पिता के दर्द को मुझ तक पहुँचने में कई साल लगे
लगभग मेरी उम्र जितने वर्ष ।
वह आया पहाड़ नदी जंगल को पार करते हुए
रोज़ मैं देखता हूँ
एक बदहवास-सा आदमी चला आ रहा है
किसी लम्बे सफ़र से
जैसे अपने किसी स्वजन को खोजता हुआ ।