Last modified on 28 जुलाई 2019, at 21:07

उतथान-चिंतन / ईश्वर करुण

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:07, 28 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ईश्वर करुण |अनुवादक= |संग्रह=पंक्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सागर की
अतल जल राशि
बीचों-बीच डूबता हुआ
और मेरा मन
कहीं डूबता हुआ
पल भर पहले तक
लगा
निराश सूरज
अपनी आत्म-हत्या पर
शायद उतारू है,
लेकिन नहीं
उसके इर्द-गिर्द के
लल्छौहीं घेरे ने
मेरे सोच को रोक दिया-
...और आत्म-ह्त्या
करने वाला सूरज
अब विहंस रहा है,
क्योंकि उसे पता है
कि वह तो कल उगेगा ही
लेकिन मेरे डूबते मन को
फिर कल उगाने की
शक्ति देने के लिए
क्या है,
तभी लगा
अपनी उत्ताल तरंगे लिए
मेरे चरणों में
सागर लेता हुआ है।