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देवी मंदिर / रश्मि भारद्वाज

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लाल पत्थरों के उस फ़र्श पर अक्सर आ बैठती हैं वे सभी औरतें
औरतें जो प्रेम में हैं
औरतें जो पिट कर आईं हैं
कुछ ने धोखा खाया और अंतिम बार प्रणाम कहने चली आईं हैं
कुछ को गर्भ में मन्नतें संजोनी हैं
कुछ बेटे की रात को दी हुई गालियां याद कर आँखें पोंछती हैं
कुछ आस से सामने खेलते शिशु को निहारती हैं
और अपनी बच्चियों के सिर पर हाथ फिरा देती हैं
कुछ को नहीं पता उन्हें जाना कहाँ हैं
पैरों को बस यहीं का पता सूझता है, घर से निकाल दिए जाने के बाद
फेयर लवली की दो परतें लगा कर आई वह सांवली लड़की
अपने होने वाली सास ननद के सामने खड़ी अक्सर काँप उठती है

उनके माथे पर आँचल हैं
आँखें बंद हैं
और होंठों पर है उनके अपनों के लंबी उम्र की प्रार्थनाएं
जबकि वे जानती हैं कि
ऐसी कोई प्रार्थनाएं नहीं बनी जिनमें गलती से भी चला आता हो उनका नाम

एक पगली अक्सर लाल पत्थर की सीढ़ियों पर आ बैठती है
देवी के भवन में
देवी की प्रतिमा के सामने
गिड़गिड़ाती औरतों को देखकर
खिलखिला के हंसती है
सोचती है, अच्छा है कि उसका कोई घर नहीं है
और उसे जी पाने के लिए किसी और के नाम की प्रार्थना नहीं करनी है।