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कोई तो ज़िन्दगी का आसरा दो / अनीता मौर्या


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कोई तो जिन्दगी का आसरा दो,
सलामत मैं रहूँ ऐसी दुआ दो,

भटकने की कोई सूरत रहे ना,
निगाहों में मुझे अपनी छुपा दो,

अगर सच दर्द का बढ़ना दवा है,
बढ़ाकर ग़म मेरे ग़म की दवा दो,

तुम्हारी बज़्म में लौटे न लौटें,
मुहब्बत का कोई नग़मा सुना दो,

ये माना मौत ने दे दी है दस्तक,
मैं जी उट्ठूंगी ग़र तुम मुस्कुरा दो