मिस चन्द्रमा मुखर्जी
आज तो जँचती हो ऐसे जैसे प्रतिमा
डूब जाती है शाम रात के सागर में
पानी सा मन छलक छलक जाता
मन की गागर से
तब मिस चन्द्रमा मुखर्जी
मन एक लिखता तुम्हारे नाम अर्जी
यद्यपि जानता हूँ तुम हो क्षय तुम हो क्षयी
फिर भी लिखता हूँ
प्रतिदिन,
प्रतिमास,
प्रतिवर्ष, आगे
तुम्हारी मर्जी;
ओ मिस चन्द्रमा मुखर्जी
[ पुरी : 1964 ]