मेरे पिता लाचार
जिन्होंने मुझे जन्म दिया
कि पीने को जहर दिया
और कुछ हथकड़ियाँ गढ़ीं
जिन्हें मैंने अकारण वरण किया
कायर पिता, धन्यवाद।
मेरे कवि निर्विकार
जिन्होंने गीतों का दंश दिया
कामक्रोध को छंद दिया
कोमल लिजलिजे अश्वासनों का
मोहक अन्तर्द्वंद दिया।
कपटी कवि, धन्यवाद।
मेरे गुरु महामतिमान
ब्रह्म ऋषि, राज ऋषि, लोक ऋषि
सभी ने मिलकर एक चौखट गढ़ा
और शब्दों की निर्मम कीलों से
उसी में मुझको ठोंक दिया
ऐसे कि आज मैं
सत्ता नहीं संज्ञा हूँ
वंचक गुरु, धन्यवाद।
[ 31.1.65 ]