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बन्द / अरुण चन्द्र रॉय

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वे चाहते हैं
 होठ सिले रहें
और बन्द हो जाएँ
स्वर
ताकि न लगे कोई
नारा कभी
शासन के विरुद्ध
 
चाहते हैं वे
उँगलियाँ
न आएँ कभी साथ
बनाने को मुट्ठी
जो उठे प्रतिरोध में
ठिठके रहे
क़दम
एक ताल में
न उठे कभी
सदनों की ओर

वे चाहते हैं

छीन लेना
हक़ जीने का
विरोध जताने का ।