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बर्फ / अरुण चन्द्र रॉय

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1
 
बर्फ़ बोलते नहीं
पत्थरों की तरह
वे पिघलते भी नहीं
इतनी आसानी से
वे फिर से जम जाते हैं
ज़िद्द की तरह ।


2

बर्फ़ का रँग
हमेशा सफ़ेद नहीं होता
जैसा कि दिखता है नँगी आँखों से
वह रोटी की तरह मटमैला होता है
बीच-बीच में जला हुआ सा
गुलमर्ग के खच्चर वाले के लिए
तो सोनमार्ग के पहाड़ी घोड़े के लिए
यह हरा होता है घास की तरह

3

बर्फ़ हटाने के काम पर लगा
बिहारी मज़दूर देखता है
अपनी माँ का चेहरा
जमे हुए हाथों से
बर्फ़ की चट्टानों को हटाते हुए

4
 
बर्फ़
प्रदर्शनी पर लगे हैं
इन दिनों
फ़ोटो उन लोगों के
जिनका सीना छलनी है
गोलियों के बौछार से
तो जिनका मस्तक लहूलुहान है
पत्थरबाज़ी से ।