भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बर्फ / अरुण चन्द्र रॉय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1
 
बर्फ़ बोलती नहीं
पत्थरों की तरह
वह पिघलती भी नहीं
इतनी आसानी से
वह फिर से जम जाती है
ज़िद्द की तरह ।


2

बर्फ़ का रँग
हमेशा सफ़ेद नहीं होता
जैसा कि दिखता है नँगी आँखों से
वह रोटी की तरह मटमैला होता है
बीच-बीच में जला हुआ सा
गुलमर्ग के खच्चर वाले के लिए
तो सोनमार्ग के पहाड़ी घोड़े के लिए
यह हरा होता है घास की तरह

3

बर्फ़ हटाने के काम पर लगा
बिहारी मज़दूर देखता है
अपनी माँ का चेहरा
जमे हुए हाथों से
बर्फ़ की चट्टानों को हटाते हुए

4
 
बर्फ़
प्रदर्शनी पर लगे हैं
इन दिनों
फ़ोटो उन लोगों के
जिनका सीना छलनी है
गोलियों के बौछार से
तो जिनका मस्तक लहूलुहान है
पत्थरबाज़ी से ।