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कवि-2 / मरीना स्विताएवा

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बहुत हैं दुनिया में लोग अवांछित, अतिरिक्त,
कहीं नहीं हैं उनके नाम इस क्षितिज में,
तुम्हारे सन्दर्भ ग्रन्थों में भी दर्ज नहीं उनके नाम,
गन्दे से भी गन्दा गढ़ा उन्हें लगता है अपना घर ।

बहुत हैं दुनिया में लोग खोखले
गूँगे होने का अभिनय करते हुए कूड़े के ढेर,
पहियों के नीचे से छिटकते हुए कीचड़
तुम्हारे रेशमी स्कर्ट की खरोंचें लिए मानों कीलें ।

बहुत हैं दुनिया में लोग कृत्रि, अदृश्य
कोढ़ के दाग़ — उनकी पहचान !
कमी नहीं दुनिया में ईओवों की ।
ईओव<ref>बाइबिल में वर्णित एक महत्त्वपूर्ण चरित्र, जिसकी परीक्षा लेने के लिए ईश्वर ने उसे सन्तान व परिवार के सुख से वंचित किया</ref> से क्या किसी को कभी ईर्ष्या हुई !

हम कवि हैं — कविताओं में प्रवेश करते हैं जातिच्युत होकर
लेकिन किनारों से बाहर आते ही
हम देवकन्याओं से छीनते हैं देवताओं को
और देवताओं से देवकन्याओं को !

22 अप्रैल 1923

मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह

शब्दार्थ
<references/>