Last modified on 7 सितम्बर 2008, at 01:35

फूल-2 / वेणु गोपाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:35, 7 सितम्बर 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेणु गोपाल |संग्रह=चट्टानों का जलगीत / वेणु गोपाल }} दोप...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दोपहर में

लोग

बड़ा-सा पेड़

ढूंढ़ते हैं

और

फूल

निपट अकेला हो जाता है।


छाँह की बुनावट में

फूल की

कोई भूमिका नहीं होती।


(रचनाकाल : 23.05.1979)