आलोक धन्या सन् 1948 में बिहार के मुंगेर जनपद में जन्म लेने वाले श्री आलोक जी हिंदी के क्रांतिकारी विचारधारा वाले कवियों में गिने जाते है। उनकी गोली दागो पोस्टर , जनता का आदमी , कपड़े के जूते और ब्रूनों की बेटिया जैसी कविताए बहुचर्चित रही है। ‘दुनिया रोज बनती है’ उनका बहुचर्चित कविता संग्रह है।
पहल सम्मान , नार्गाजुन सम्मान, फिराक गोरखपुरी सम्मान, गिरिजा कुमार माथुर सम्मान और भवानी प्रसाद मिश्र सम्मान सहित अनेक सम्मानों से सम्मानित आलोक धन्या जी विगत बारह चौदह वर्षों से लेखन में चुप्पी साधे हुये थे। एक अरसे के बाद महात्मा गांधी अंतरराष्टीªय हिंदी विश्वविद्यालय की पत्रिका ‘बहुबचन’ में उनकी चार नई कविताएँ सामने आई हैं। इन कविताओं के छपने के बाद हिंदी जगत में इनका ब्यापक स्वागत हुआ है। इन चार कबिताओं में से पर्यावरण दिवस 5 जून के अवसर पर दैनिक ‘अमर उजाला’ ने एक कविता ‘नन्हीं बुलबुल के तराने’ अपने रविवारीय संस्करण में प्रकाशित की है।