Last modified on 3 अगस्त 2006, at 10:39

सांध्य वंदना / सुमित्रानंदन पंत

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:39, 3 अगस्त 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लेखक: सुमित्रानंदन पंत

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

जीवन का श्रम ताप हरी हे!
सुख सुषुमा के मधुर स्वर्ण हे!
सूने जग गृह द्वार भरो हे!

लौटे गृह सब श्रान्त चराचर
नीरव, तरु अधरों पर मर्मर,
करुणानत निज कर पल्लव से
विश्व नीड प्रच्छाय करो हे!

उदित शुक्र अब, अस्त भनु बल,
स्तब्ध पवन, नत नयन पद्म दल
तन्द्रिल पलकों में, निशि के शशि!
सुखद स्वप्न वन कर विचरो हे!