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गंगा-स्तुति / विद्यापति

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बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे
छोड़इत निकट नयन बह नीरे
कर जोरि बिनमओ विमल तरंगे
पुन दरसन होए पुनमति गंगे
एक अपराध छेमव मोर जानी
परसल माय पाय तुअ पानी
कि करब जप तप जोग धेआने
जनम कृतारथ एकहि सनाने
भनइ विद्यापति समदओं तोंही
अंत काल जनु बिसरह मोही