Last modified on 29 अगस्त 2020, at 17:48

बहार / अभिषेक कुमार अम्बर

Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:48, 29 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिषेक कुमार अम्बर |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फ़स्ल पक आई है गेहूँ की
गुंचे मुस्कुराए हैं
कुछ मिट्टी के गमलों में
तो कुछ धरती की बाहों में
इक इक हाथ उग आया है
चटनी के लिए धनिया
पुदीने की भी कोंपल
थोड़ी थोड़ी फूट आई हैं
मगर इक बीज तुमने
दिल की धरती पर जो बोया था
वो अब भी मुंतज़िर है
तुम्हारा खाद पानी चाहता है।