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ज़ुनून / सपन सारन

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जब देश में दंगा हो रहा था
ऐ कवि तू तब कहाँ था ?
— मेरे गुसल का नल टूटा था
पानी बहता बचा रहा था

जब लोग सारे रो रहे थे
ऐ कवि तू तब कहाँ था ?
— बच्ची मेरी भूखी बड़ी थी
खाना-वाना जुटा रहा था

जब ख़ून गीला बह रहा था
ऐ कवि तू तब कहाँ था ?
— आसमां में तारे कम थे
मैं धुन्ध-धुआँ हटा रहा था

जब सब बेचारे मर चुके थे
ऐ कवि तू तब कहाँ था ?
— नंगी क़ब्रें खुली पड़ी थीं
इक-इक की चादर बना रहा था