Last modified on 11 अक्टूबर 2020, at 18:11

सलीक़ा / निदा फ़ाज़ली

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:11, 11 अक्टूबर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देवता है कोई हम में
न फरिश्ता कोई
छू के मत देखना
हर रंग उतर जाता है
मिलने-जुलने का सलीक़ा है ज़रूरी वर्ना
आदमी चंद मुलाक़ातों में मर जाता है