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पावस-गीत / सुधा गुप्ता

मेघों की अलकों में
शम्पा के फूल
लहर-लहर लहराए
धानी दुकूल
कहाँ चली सज -धजके
बोलो तो !

अँबुवा की डाली पर
पड़ गए झूले
बैरागी भँवरे भी
जोग-रोग भूले
पायल बजी गीतों की
गली -गली

कोयल फिर-फिर
मचली
कहाँ चली उछल , चपल !
बोलो तो !
मन की गाँठ खोलो तो
बोलो तो !
</ poem>