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तुम्हेँ लगता है तो लगता रहे, बेकार लिखता हूँ / फूलचन्द गुप्ता

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तुम्हेँ लगता है तो लगता रहे बेकार लिखता हूँ
फ़क़त मैं अनुभवों के नज़्म ओ अशआर लिखता हूँ

इसे तुम शायरी समझो कि मेरा फ़लसफ़ा समझो
बहुत नफ़रत है दुनिया में, मुकम्मल प्यार लिखता हूँ

मिरे अलफ़ाज़ ओ लब से टपकता खून है क्योंकि
गुज़रते वक़्त के मौजूँ असह तकरार लिखता हूँ

किया है बेदख़ल दिल से, ये तेरी बदमिज़ाजी है
वगरना जुस्तजू सच की मुझे, सौ बार लिखता हूँ

मुझे अहमक कहेंगे जो, यक़ीनन आप अहमक हैं
अगर सारी वबा को जंग-ए-बाज़ार लिखता हूँ