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फूलचन्द गुप्ता
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फूलचन्द गुप्ता
जन्म | 30 अक्तूबर 1958 |
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जन्म स्थान | अमराई गाँव, फ़ैजाबाद, उत्तर प्रदेश |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
इसी माहौल में (1996), हे राम ! (गुजरात के नरसंहार पर लम्बी कविता ’पहल’ पुस्तिका के रूप में – 2002), साँसत में हैं कबूतर (गुजरात के नरसंहार पर कविताएँ ’आकंठ’ पुस्तिका के रूप में – 2003), कोई नहीं सुनाता आग के संस्मरण (2006), राख का ढेर (2010), ‘कोट की जेब से झाँकती पृथ्वी (2012), दीनू और कौवे (2012), झरने की तरह (2013), फूल और तितली (2014) - सभी कविता-संग्रह। ख़्वाब ख्वाहों की सदी है (2009), आरज़ू–ए–फूलचन्द (2015) -दोनों ग़ज़ल संग्रह। प्रायश्चित नहीं प्रतिशोध (1997) - कहानी संग्रह । प्रथम दशक के हिन्दी उपन्यास और मुक्तिचेतना (2016) - आलोचना । गांधी अन्तरमन (गुजराती में- 2008) - चिन्तन । Gems on grass tips (poems in prose - 2018). रघुवीर चौधरी के मूल गुजराती भाषा के उपन्यासों ‘लगाव’ और ‘दरार’ का हिन्दी में अनुवाद । हरीश मंगलम् की गुजराती कहानियों का 'तलब' नाम से हिन्दी में अनुवाद । पन्नालाल पटेल तथा रघुवीर चौधरी की कहानियों सहित ढेरों कहानियों, कविताओं, साक्षात्कारों, नाटकों तथा आलोचनात्मक निबन्धों के गुजराती से हिन्दी में अनुवाद। | |
विविध | |
कवि, कथाकार और गुजराती से हिन्दी में अनुवादक। कविता संग्रह ‘इसी माहौल में’ के लिए ‘सांप्रदायिक सद्भाव एवं जनवादी लेखन’ का ‘सफ़दर हाशमी पुरस्कार । अरावली शिखर सम्मान । गुजरात हिन्दी साहित्य अकादमी पुरस्कार । हिन्दी के अलावा अंग्रेजी तथा गुजराती में भी लेखन । | |
जीवन परिचय | |
फूलचन्द गुप्ता / परिचय |
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
ग़ज़लें
- पहले-पहले डर लगता है / फूलचन्द गुप्ता
- जाने कितने पत्थर घर के अन्दर रहते हैं / फूलचन्द गुप्ता
- दिल टूटा, ख़ामोश रहे तुम, कुछ तो बोलो ! / फूलचन्द गुप्ता
- कुछ का हिसाब दर्ज है, कुछ बेहिसाब है / फूलचन्द गुप्ता
- एक-से हों घर, अलग आकार न हो / फूलचन्द गुप्ता
- बेवजह की नहीं, बावजह कीजिए / फूलचन्द गुप्ता
- बोला कि आफ़ताब हूँ, दरवाज़ा खोलिए / फूलचन्द गुप्ता
- घर के पास नदी होती थी / फूलचन्द गुप्ता
- कोई नया हिसाब लगाया गया है कल / फूलचन्द गुप्ता
- बोलो जुबाँ सम्भाल कर, सरकार ने कहा है / फूलचन्द गुप्ता
- मत हो सखी उदास, बुरे दिन जाएँगे / फूलचन्द गुप्ता
- घर से बाहर पाँव रखा, तालाब मिला / फूलचन्द गुप्ता
- तुम्हेँ लगता है तो लगता रहे, बेकार लिखता हूँ / फूलचन्द गुप्ता
- बनकर के गाज गिरती है दुआ-ए-हुकूमत / फूलचन्द गुप्ता
- घर-घर में सिर्फ़ भूख है दर-दर पे प्यास है / फूलचन्द गुप्ता
- तहज़ीब का यह कौन-सा मक़ाम आ गया / फूलचन्द गुप्ता
- वहाँ जहाँ कोई रास्ता नज़र नहीं आता / फूलचन्द गुप्ता
- जो बोलूँगा, सच बोलूँगा / फूलचन्द गुप्ता
- धुन्ध के उस पार राहें हैं / फूलचन्द गुप्ता
- मैंने किसी के सामने सज़दा नहीं किया / फूलचन्द गुप्ता
- नज़र आग उगले, जुबाँ आग उगले / फूलचन्द गुप्ता
- चलिए कि बहुत दर्द है रोते हैं थोड़ी देर / फूलचन्द गुप्ता
- ख़ल्वत में रहें क़ैद या जल्वत में रहें हम / फूलचन्द गुप्ता
- चल रही थी एक गाड़ी, सब उचककर बैठ गए / फूलचन्द गुप्ता
- बुत-ए-ख़ाक हूँ मैं बनूँगा – मिटूँगा / फूलचन्द गुप्ता
- ज़िन्दा तमाम उम्र हूँ उज़रत के सहारे / फूलचन्द गुप्ता
- तुम्हारी पीठ पर बैठे हैं, समझदार हैं वो / फूलचन्द गुप्ता
- रिश्ता हमारे बीच का ऐसा बना रहे / फूलचन्द गुप्ता
- जिसको पराई पीर पे रोना नहीं आया / फूलचन्द गुप्ता
- चूल्हा है, चक्की है, भूख़ है, भय है / फूलचन्द गुप्ता
कविताएँ